जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गया है, उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है। जो थोडा इधर थोडा उधर हाथ मारते है, वे कोई उद्देश्य पुर्ण नही कर पाते। हा, वे कुछ क्षणो के लिए तो बडा जोश दिखाते है, किन्तु वह शीघ्र ही हो जाता है ठण्डा।
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
माँ काश तुम नारी होती.....
माँ
जब तुम बेटी थी
तब तुम
लाडली थी पिता की
रोज़ उनकी दिन भर की थकान को
बदल देती थी मुस्कराहट में
माँ
जब तुम बहन हुई
तब बाँधी तो राखी भाई को तुमने
पर खड़ी हुई ख़ुद आगे
उस पर खतरे की
हर आहट में
माँ
जब थी तुम प्रेमिका
तब एक एक जोड़ा गया
सिक्का
दे डाला था कॉलेज के
उस धोखेबाज़ युवक को
माँ
जब तुम बनी पत्नी
पति की हर
ग़लत हरक़त पर भी
ना दिल में दी जगह
तुमने शक को
माँ
जब तुम बहू थी
तब हर बात
हर ताना, हर व्यंग्य
हर कटाक्ष हर तारीफ़
तुमने निरपेक्ष भाव से सहा
माँ
जब तुम माँ बनी
पहली बार
कितना दर्द सहा
पर किसी से
कभी नहीं कहा
माँ
तुम जब भी
बेटी थी, बहन थी
पत्नी थी या माँ थी
तब भी हर बार तुम माँ ही रही
और कुछ कहाँ थी
पर माँ
तुम सब कुछ थी
तो स्त्री क्यों नहीं हो पायी
क्यों अपने भीतर की
स्त्री को
छुपा दिया इन आवरणों में
क्यूँ ख़ुद के अस्तित्व को
ख़त्म कर डाला
लगा कर
अपने ऊपर चिप्पियाँ हज़ार
हर बार
क्या एक माँ, एक बहन
या कुछ भी और
होने के साथ साथ
तुम्हारे लिए लाज़मी नहीं था
एक स्त्री भी होना
क्यूँ जब तुम बेटी थी
तो बेटे से कम हिस्से पर खुश हो गई....
क्यूँ जब तुम बहन थी
तो खाई
भाई के हिस्से की डांट
क्यूँ हर बार
यह सुन कर भी चुप रहीं
कि लड़की तो धन है पराया
क्यों प्रेमी से ही विवाह का
साहस मन में नहीं आया
क्यों किताबें ताक पर रखी
और थाम ली हाथों में
कड़छियां
नहीं पूछा कभी पिता से कि
क्यों काम करें केवल लड़कियां
क्यों नहीं कभी कहा
कि नहीं
काम में कैसा बंटवारा
सब कमाएं, सब पढ़ें
क्या हमारा
तुम्हारा
मां
क्यों खुद अपनी बेटी को
बोझ मान लिया
क्यों नहीं बहू को लाड़
बेटी सा किया
मां
तुम तो मां थी न
फिर क्या मुश्किल था
तुम्हारे लिए
माँ तो सब कुछ कर सकती हैं ना
माँ
तो फिर
क्यूँ नहीं हो पायी तुम
एक स्त्री
माँ
क्यूँ तुम पर हावी रहा
हमेशा कोई नर
कितना अलग होता
तुम मां, बहन या कुछ भी
होने से पहले
एक नारी होती अगर.....
(मैं ऋणी हूं अपनी मां का जिनकी वजह से आज कुछ बन पाया......पर आज भी अखरता है कि कब तक बच्चों को पालने सिखाने और बड़ा करने की ज़िम्मेदारी, रसोई के बर्तनों का शोर और सलीके सीखने का ज़ोर केवल स्त्रियों पर ही रहेगा और बेटे को पाल कर बड़ा आदमी बना देने वाली माँ बेटी से अन्याय करने पर मजबूर हो जाती है ?)
मयंक...
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