जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गया है, उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है। जो थोडा इधर थोडा उधर हाथ मारते है, वे कोई उद्देश्य पुर्ण नही कर पाते। हा, वे कुछ क्षणो के लिए तो बडा जोश दिखाते है, किन्तु वह शीघ्र ही हो जाता है ठण्डा।
बुधवार, 24 नवंबर 2010
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
सोमवार, 1 मार्च 2010
असभ्य सभ्य पर हँसता है!!!
आज एक अर्ध्दनग्न लड़की को,
एक सभ्य औरत पर हँसते देखा,
वजह बस इतनी थी कि,
औरत घुंघट ले गाड़ी मेँ,
अपनी इज्जत को खुद मेँ,
समेटे चुपचाप बैठी थी,
और वह आधुनिक लड़की,
कामुक वेश मेँ चौराहे पर खडी,
परोस रही थी अपनी जिस्म,
दुनियां को सरेआम,
और हँस रही थी उस औरत पर,
कैसा बदल गया जमाना अब,
असभ्य सभ्य पर हँसता है,
वाह वाही का हक पाता है,
और वह नारी,
जो भारतीयता की पहचान है,
जिसकी महिमा का गुनगान,
गुँजता है आदिग्रन्थोँ मेँ,
विषय बन जाती है हँसी की,
इन लडकियोँ के बीच,
कहाँ गई भारत की वह गरिमा,
जहाँ नारी देवी मानी जाती थी,
क्या यही है उसका प्रतिबिम्ब,
शायद सब कुछ बदल गया अब,
चोर उचक्के बन गये साधु,
लुटेरे बन गये देश के कर्णधार,
तो क्योँ न यह लडकी,
हँसे उस शालीन औरत पर-
-प्रकाश यादव "निर्भीक"
रविवार, 28 फ़रवरी 2010
कुछ यूँ भी .......
पत्थरों के शहर में ,शीशा हुए हम|
खुदा कि खुदाई ,सहते रहे हम
पत्थरों को भगवान मान ,पूजते रहे हम|
उन सूनी और अँधेरी गलियों, कि क्या कहें
जब भीड़ भरी सडको पर , तनहा रहे हम|
अहसासों के आँगन में ,आवाज कि खामोशिया
चंदा कि चांदनी, में ढूंढते रहे हम|
सरपट दौडती जिदगी के , चोराहे पर
वक्त ही कहाँ नजरे मिलाने चुराने को दे पाए हम
अभिव्यक्ति
कोई
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
क्यूँ न पुछा था मुझ से , उसने , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं वो , बस मिलके बिछुडने लिए !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोई , मेहमान बन , फ़िर दिल में ‘समाने के लिए’ "
लावण्या...
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
होली के रंग में
कल्लो कटीली लग रही होली के रंग में।
अब भंग की तरंग का कुछ ऐसा रंग है
हर शै नशीली लग रही होली के रेंग में।
ये भंग की तरंग है या जाम का नशा
बुढ़िया नवेली लग रही होली के रंग में।
इस फाग की मस्ती में सभी टुल हो गए
मिर्ची रसीली लग रही होली के रंग में।
मस्ती के इस आलम का नशा इस कदर चढ़ा
मकबूल भी रंगीं हुए होली के रेंग में।
मकबूल
मेरे हिस्से में हरदम जूठन ही क्यों आया...
जब मैं इस दुनिया में आई
तो लोगों के दिल में उदासी
पर चेहरे पर झूठी खुशी पाई।
थोड़ी बड़ी हुई तो देखा,
भाई के लिए आते नए कपड़े
मुझे मिलते भाई के ओछे कपड़े।
काठी का हाथी, घोड़ा, बांदर आया
भाई थक जाता या
खेलकर उसका मन भर जाता
तब ही हाथी, घोड़ा दौड़ाने का,
मेरा नंबर आता।
मैं हमेशा से ये ही सोचती रही
क्यूं मुझे भाई का पुराना बस्ता मिलता
ना चाहते हुए भी
फटी-पुरानी किताबों से पढऩा पड़ता।
उसे स्कूल जाते रोज रूपया एक मिलता
मुझे आठाने से ही मन रखना पड़ता।
थोड़ी और बड़ी हुई, कॉलेज पहुंचे
भाई का नहीं था मन पढऩे में फिर भी,
उसका दाखिला बढिया कॉलेज में करवाया
मेरी इच्छा थी, बहुत इच्छा थी पर,
मेरे लिए वही सरकारी कन्या महाविद्यालय था।
और बड़ी हुई
तो शादी हो गई, ससुराल गई
वहां भी थोड़े बहुत अंतर के साथ
वही सबकुछ पायाथोड़ी बहुत बीमार होती तो
किसी को मेरे दर्द का अहशास न हो पाता
सब अपनी धुन में मगन -
बहु पानी ला, भाभी खाना ला
मम्मी दूध चाहिए, अरे मैडम चाय बना दे।
और बड़ी हो गई,
उम्र के आखरी पडाव पर आ गई
सोचती थी, काश अब खुशी मिलेगी
पर हालात और भी बद्तर हो गए
रोज सबेरा और संध्या बहु के नए-नए
ताने-तरानों से होता।
दो वक्त की रोटी में भी अधिकांश
नाती-पोतों का जूठन ही मिलता।
अंतिम यात्रा के लिए,
चिता पर सवार, सोच रही थी-
मेरे हिस्से में हरदम जूठन ही क्यों आया।
प्रस्तुति:- लोकेन्द्र सिंह राजपूत. दिल दुखता है.....
मैं तो यहीं हूँ....तुम कहाँ हो...!!
कब तलक यूँ ही मैं मरता रहूँ !!
सोच रहा हूँ कि अब मैं क्या करूँ
कुछ सोचता हुआ बस बैठा रहूँ !!
कुछ बातें हैं जो चुभती रहती हैं
रंगों के इस मौसम में क्या कहूँ !!
हवा में इक खामोशी-सी कैसी है
इस शोर में मैं किसे क्या कहूँ !!
मुझसे लिपटी हुई है सारी खुदाई
तू चाहे "गाफिल" तो कुछ कहूँ !!
०००००००००००००००००००००००००
०००००००००००००००००००००००००
दूंढ़ रहा हूँ अपनी राधा,कहाँ हैं तू...
मुझको बुला ले ना वहाँ,जहाँ है तू !!
मैं किसकी तन्हाई में पागल हुआ हूँ
देखता हूँ जिधर भी मैं,वहाँ है तू !!
हाय रब्बा मुझको तू नज़र ना आए
जर्रे-जर्रे में तो है,पर कहाँ है तू !!
मैं जिसकी धून में खोया रहता हूँ
मुझमें गोया तू ही है,निहां है तू !!
"गाफिल"काहे गुमसुम-सा रहता है
मैं तुझमें ही हूँ,मुझमें ही छुपा है तू !!
भूतनाथ
रविवार, 17 जनवरी 2010
आँखों में क्या हैं …
माता की आँखों में - ममता
भाई की आँखों में - प्यार
बहिन की आँखों में - स्नेह
अमीर की आँखों में - घमण्ड
गरीब की आँखों में - आशा
मित्र की आँखों में - सहयोग
दुश्मन की आँखों में - बदला
सज्जन की आँखों में - दया
शिष्य की आँखों में - आदर
सुवर्ण-संस्कार…ॐॐॐ
शनिवार, 16 जनवरी 2010
भाई का पत्र बहन को
माँ बाप का सिर शर्म से झुक न जाए,
बहिनें वरदान बने अभिशाप नहीं"
आज के इस अपसंस्कृति के घोर अंधकार में दिग्भ्रमित होकर हमारी बहनें एक छ्द्दम, लुभावने किन्तु यातनामय प्यार के जाल में फंसकार घर से भाग कर अपनी जिंदगी को पतन की खाई में धकेल देती है । जिसके परिणाम स्वरुप उनकी जिंदगी नरक होकर रह जाती है। अपनी बहनों को नरक जैसी जिंदगी से बचाने की तलाश में एक सच्चे भाई की पुकार को प्रस्तुत कर रहा हु....
मन से पूरी तरह त्यागना,
बाप के घर से मरना भी पडे,
तो भी घर से कभी मत भागना।
प्रिय बहन, शुभाशीष
आज तुम्हें एक खास नसीहत देने के लिए मैं यह खत लिख रहा हूँ। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठॊं में दर्ज शायद तुमने पढ़आ हो या नहीं ,शायद तुम्हें जानकारी हो या नहीं, क्योंकि मैं जानता हूँ बहन कि तुम्हें टी.वी. छोडकर पुस्तकें पढ़ने की फुर्सत ही कहाँ है? इतिहास के झरोखे मे झांकने का वक्त ही कहाँ है? लेकिन तुम्हें इस भैया की कसम है तुझे ये खत पुरा पढ़ना होगा।
तुमने पन्नाधाय का नाम सुना होगा, फ़र्ज निभाने में इससे बढ़कर दुनिया में कोई ऐसा उदाहरण आज तक दुसरा नहीं हुआ। एक माँ फर्ज की खातिर अपनी ही नजरों के सामने अपने जिगर के टुकडे का कत्ल होते देखती रह जाती है। दुसरो के लिए इतने बडे त्याग की गाथा आज तक दूसरी नहीं हुई। ये नारी का त्याग है।
हाडी रानी का नाम सुना है? युध्द भुमि में लडते हुए अपने पति को, पत्नी मोह में फ़सने से, उसके द्वारा मंगवाई एक निशनी के रुप में हाडी रानी(पत्नी) अपने सिर को काटकर युध्द भुमि में भेज देती है, ताकि वो वीरतापूर्वक युध्द जीत सके। मेरी बहन, ये भी एक नारी का त्याग है।
अलाउद्दीन खिलजी ने जब आक्रमण किया और मेवाड कीं महारानी पद्दमिनी के रुप पर वह आसक्त हो गया तो उस वीरांगना ने अपने शील की रक्षा हेतु जौहर कर यानी अग्नि में कूद गई। यह भी एक नारी के त्याग की पराकाष्ठा है।
ऐसे एक ही नहीं सैकड़ों उदाहरण है त्याग के जिसका उल्लेख यहाँ मुश्किल है। मेरी बहन तूने कल्पना चावला का नाम सुना होगा। अमेरिका की अन्तरिक्ष यात्रा पर जाने वाली पहली भारतीय नारी। यह दुर्भाग्य था हमारा कि वे नहीं रह पाई पर उनके अपने हौंसले ने विश्व क्षितिज पर भारत माँ का नाम रोशन किया।
तुम क्या समझती हो, अगर वो तुम्हारी तरह टी.वी. व फिल्मों में समय बर्बाद करती तो क्या अंतरिक्ष यात्री बन सकती थी, कभी नहीं। यदि वो स्कुल कोलेज में युवकों के साथ मटर गश्ती करती तो क्या वो भारत माँ का नाम विश्व के मानचित्र पर रोशन कर सकती थी? कभी नहीं ।
फिर तुममें इतनी समझ क्यों नहीं कि तुम भी जीवन में कोई कीर्तिमान स्थापित करो । वैसे आज हर क्षेत्र में नारियाँ युवकों की तुलना में अव्वल है, किन्तु कई बहने टी.वी. फिल्मों की काल्पनिक दुनिया की चकाचौंध में दीवानी होकर समय से पहले ही जीवन दर्पण तोड देती है।
मेरी बहन, जीवन क्या है? तुम्हें इसके महत्व को समझना होगा। इसके लिए तुम्हें स्वयं को त्याग की भट्टी में कुन्दन बनाकर वक्त की कसौटी पर कसना होगा। तभी जीवन की सार्थकता का भान होगा। बहन जीवन यह नहीं कि तुम ब्यूटी पार्लर में जाकर अपने रुप को सँवारती रहो। जीवन यह नहीं कि हीरो हीरोइनों के पगलपन का शिकार होकर उनकी बेवकूफी को जीवन का सत्य समझ बैठो। जीवन यह भी नहीं कि तुम पारिवारिक रिश्तों को भुलकर युवकों के उन्माद में पडकर गहरे कुएँ में डुबकियाँ लगाती रहो।
तुम त्याग की मुर्ती हो। तुम समर्पण का स्वरुप हो। करुअणा भाव रोम रोम में समाया है । बहन! तुम्हें मालुम नहीं होग कि एक जमाना था कि बेटी को जन्मते ही दुधपीती कर देते थे, यानी दूध में डुबा कर मार देते थे। बेटी को जन्मते ही जिन्दा गाड़ दिया जाता था, बेटी अभिशाप मानी जाती थी।
लेकिन आज बेटी के जन्म को वरदान के रुप में लिया जाता है। तुम्हारे जन्म पर लड्डू बाँटे गए थे, पार्टियाँ दी गई थी। घर में जश्न मनाया जाता है। आज हर बाप अपनी बेटी को बेटे से ज्यादा वफादार मानता है।
बहन! तू ध्यान से सुन, जब तुम्हारा जन्म हुआ माँ-बापू की खुशी का पारावार न रहा। उनके आंगन का कण कण झूम उठा तुझे अच्छी से अच्छी स्कुलो में प्रवेश दिलाया । एक से बढ्कर एक महंगे खिलौने को तेरे साथी बनाया। उच्चतम श्रेणी के महंगे परिधानो की आपूर्ति में तेरे पापा कभी नहीं सकुचाए। तेरे हर आदेश को तेरा पापा ने अध्यादेश माना, तू बडी होती गई। यौवन की दहलीज पर पाँव बढाती चली गई। अपनी मीठी वाणी से तू सबको मोहित करती गई। भाई की कलाई को रक्षाबन्धन के दिन नये विश्वास के साथ तू सजाती रही। इधर तेरे पापा तेरे हाथ पीले करने की फ़िक्र में दिन रत मेहनत में लगे रहे, इसलिए कि वे तुझे दुनिया का हर सुख दे सकें। तेरा विवाह धूम धाम से करें। उनकी यही भावना थी कि बेटी की शादी के वक्त उसके सपनों का शाहजादा घोडे पर सवार होकर जब आये तो वे विवाह स्थल पर जन्नत के चाँद तारे उतार लाएँ। इन भावनाओं की कद्र करना सीखो बहन!
रोज मन्दिर जाने वाली बेटी, हिन्दू संस्कारो में पलने वाली बेटी, बाप की बाहों में लिपटने वाली बेटी, माँ के आँचल में छुप छुपकर रोने वाली बेटी, भाई के हाथों में राखी बांधने वाली बेटी, महंगे वस्त्रो के लिए जिद करने वाली बेटी यदि अपने मन ही मन में इन सारे पवित्र रिश्तों को कब्र में दफनाने की साजिश रचने वाली चुडैल का स्वरुप लेने लग जाये, तब बाप फिर सोचने लगेगा कि मैनें जन्मते ही इस कुलच्छिनी का गला क्यों नहीं घोंट दिया?
मेरी बहन! इतने सारे पवित्र रिश्तों को तोड़कर तुम भाग क्यों जाती हो? तुम्हें बाप के घर में क्या दुःख था जो तुम उन्हें दु:खों की कूर आंधियों में गोते लगाने हेतु छोड कर घर से भाग गई। इतनी कायर कैसे हो गई तुम कि स्वर्थवश एक साथ माँ बाप व भाई के अरमानो को क्यों दफन कर जाती हो ? तुम अपनी क्षणिक खुशी के लिए ता-जिन्दगी खुशी देने वाले इन रिश्तों का गला क्यों घोंट देती हो ? जिनके संग तुमने सारा बचपन गुजारा, जिनकी लोरियाँ सुनकर तुम सोयी, जिनकी थपकियों से तुमने गहरी नींद पायी, जिस बाप ने अपने हाथों के झूले में तुम्हें झुलाया, जिस भाई ने तुम्हारी रक्षा में प्राण देने की कसमे खाई, तुम इन परिजनों का त्याग कैसे भूल जाती हो ? इतनी स्वार्थी कैसे बन जाती हो ?
तुम युवकों की वासना का शिकार हो जाती हो। तुम मुहब्बत के झुठे जाल में फंसती चली जाती हो और धीरे धीरे प्यार के जाम पी पीकर तुम अपने पुरे परिवार के लिए कलंक की कालिमा बन जाती हो। तुम बडी धोखे बाज बन जाती हो। कभी तुम माँ बाप द्वारा सगाई करने के बाद भी घर से भागकर अपने चेहरे पर कालिख पोत जाती हो। कई बार तुम माँ बाप द्वारा शादी की पत्रिका बांटने के बाद भी अपने प्रेमी के साथ भागकर अपने परिवार को जिन्दा कब्र में गाड देती हो। भागते वक्त तुम्हें क्यों याद नहीं आता माँ का करुणा भरा चेहरा, बाप के चेहरे पर झलकता वात्सल्य का भाव, भाई की आँखों में तैरता तेरी प्रीत का महासागर?
हिन्दू धर्म में जन्म लेने वाली बेटी यह कैसे भुल जाती है कि जिसके साथ वह भाग कर जा रही है वह मांसाहारी है या नहीं, उम्र में 10-12 साल बडा है या उसके परिजनों का चरित्र क्या याद रखना बहन ? जो भी मुहब्बत के जाल में फंसकर भागकर तथा बाबुल की दहलीज को ठॊकर मारकर गई है, वह आज दाने-दाने को मोहताज है। अब खून के आँसू रो रोकर माथा फोड रही है।
मेरी बहन! तुम अब जवान हो गई हो। अपने जीवन साथी के चयन में विवेक जगाओ। यह जीवन एक लम्बी यात्रा है, जो साथी तुम्हें धोखे से उडा ले जाए, वो तुम्हें जीवन में खुशियाँ नहीं दे सकता। दोस्त होना अलग बात है। जीवन साथी बनाना अलग बात है। तुमने इतने संस्कार भी नहीं जगाये कि क्या मजाल है कोई तुम्हारे तेज से भस्मीभूत हो जाये, पर दुःख तो इस बात का है कि तुम खुद भौतिकता की चादर ओढकर फिल्मों का जहर पीकर पागलपन में झूठे प्यार की आग में जलती चली जाती हो। बहन! तुम अपनी खुशियों की कब्र स्वयं अपने हाथों से खोद रहीं हो।
मगर ये बात किसको याद रहती है भरी जवानी में"
तुम्हें यह शाश्वत सत्य आज स्वीकार करना ही होगा कि दुनिया में आज तक ऐसी कोई माँ नहीं हुई जिसने अपनी औलाद का अहित सोचा हो, अतः माँ को सखी, मार्ग दर्शक, देवी व भगवान मानकर उसकी इच्छा के विरुध्द कभी कोई कदम न उठाना।
युम्हारे जीवन में वे कभी, काटे बो नहीं सकते।
जीते जी कैसे पहुँचाओगी, तुम उनको शमशान्।
पूजा वाला चंदन है नारी,
जिसमें संस्कारों की तुलसी,
एसा एक आगंन है नारी॥"
शनिवार, 9 जनवरी 2010
सुन लो मेरी दर्द कहानी…
ऎ हिन्द देश के लोगों, मेरी सुन लो दर्द कहानी।
क्यों दया धर्म बिसराया, क्यों दुनिया हुई विरानी॥
जब सब को दूध पिलाया, मैं गौ माता कहलाई।
क्या है अपराध हमारा, जो काटे आज कसाई॥
बस भीख प्राण की दे दो, मैं द्वार द्वार हरि आई।
मैं सबसे निर्बल प्राणी, मत करो आज मनमानी।
ऎ हिन्द देश के लोगों…………
जब जाऊँ कसाईखाने, चाबुक से पीटी जती।
जब उबले को तन पर, मैं सहन नहीं कर पाती॥
जब यंत्र मौत का आता, मैं हाय-हाय चिल्लाती।
मेरा कोई साथ न देता, यहाँ सब की प्रीत पहचानी॥
ऎ हिन्द देश के लोगों……………
उस समदर्शी ईश्वर ने, क्यों हमको मूक बनाया।
न हाथ दिये लड्ने को, हिन्द भी हुआ पराया॥
कोई कृष्ण / मोहन बन जाओ रे, जिसने मोहे गले लगाया।
मैं फर्ज निभाऊँ माँ का, पर जग ने प्रीत न जनी॥
ऎ हिन्द देश के लोगों……………
मैं माँ बन दूध पिलाती, तुम माँ का मांस बिकाते।
क्यों जननी के चमड़े से, तुम पैसे आज कमाते॥
मेरे बछडे अन्न उपजाते, पर तुम सब दया न लाते।
गौ हत्या बन्द करो रे, रहने दो वंश निशानी ॥
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
सुख के किनारे, गम के ये धारे....
सुख के किनारे, गम के ये धारे....
सुख के किनारे, गम के ये धारे....
चली जा रही नदिया किसके सहारे....
सुख के किनारे ,गम के ये धारे...
शम्मा रात की बुझ सी गई है...
चांदनी सी थी वो बुझ सी गई है...
कहाँ जायेंगे ये अम्बर के तारे....
सुख के किनारे गम के ये धारे...
रास्तो में बिखरे हैं मंजिलों के निशाँ....
बुत बन गए हैं जो थे कभी कारवां...
दिखाई न देते जिंदगी से हारे...
सुख के किनारे गम के ये धारे...
अपनों के तिनके बिखरने लगे हैं...
एक एक कर सब राह बदलने लगे हैं...
अपनी तन्हाई से इलने लगे हैं ये सारे ...
सुख के किनारे दुःख के ये धारे...
सुख के किनारे, दुःख के ये धारे...
चली जा रही नदिया किसके सहारे ...
...भावार्थ
सोमवार, 4 जनवरी 2010
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं / गुलज़ार
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी-भरकम हो जाते हैं
कुछ भारी-भरकम बर्फ़ के-से
बरसों के तले गलते-गलते
हलके-फुलके हो जाते हैं
नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है
बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
परखना मत....!!!
भी आइने में देर तक चेहरा नही रहता ,
बड़े लोगों से मिलने में हमेसा फासला रखो ,
जहाँ दरिया समंदर से मिला , दरिया नही रहता,
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नए मिजाज़ बाला है ,
हमरे शहर में भी अब कोई हमसा नही रहता ,
मोहब्बत में तो खुशबू है हमेशा साथ चलती है ,
कोई इंसान है जो तन्हाई में भी तन्हा नही रहता !!!
bthoms-sonami
शनिवार, 2 जनवरी 2010
पागलपन
पहेलि 1
बोलो एसी चीज है क्या, कहते समय शरमाते है।
कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा
समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता ,
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा
मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता ,
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
एक नयी सुबह है आई.
स्वर्ण रश्मि नैनों के द्वारे
सो गये हैं अब सारे तारे
चाँद ने भी ली विदाई
देखो एक नयी सुबह है आई.
मचलते पंछी पंख फैलाते
ठंडे हवा के झोंके आते
नयी किरण की नयी परछाई
देखो एक नयी सुबह है आई.
कहीं ईश्वर के भजन हैं होते
लोग इबादत में मगन हैं होते
खुल रही हैं अँखियाँ अल्साई
देखो एक नयी सुबह है आई.
मोहक लगती फैली हरियाली
होकर चंचल और मतवाली
कैसे कुदरत लेती अंगड़ाई
देखो एक नयी सुबह है आई.
फिर आबाद हैं सूनी गलियाँ
खिल उठी हैं नूतन कलियाँ
फूलों ने है ख़ुश्बू बिखराई
देखो एक नयी सुबह है आई.
WISH YOU ALL HAPPY NEW YEAR-2010
PETALS OF ROSES...
PALM FULL OF HOLLY WATER....
LIGHT OF SUNSHINE.....
FRAGRANCE OF FLOWERS......
WISH YOU & YOUR FAMILY