सुख के किनारे, गम के ये धारे....
सुख के किनारे, गम के ये धारे....
चली जा रही नदिया किसके सहारे....
सुख के किनारे ,गम के ये धारे...
शम्मा रात की बुझ सी गई है...
चांदनी सी थी वो बुझ सी गई है...
कहाँ जायेंगे ये अम्बर के तारे....
सुख के किनारे गम के ये धारे...
रास्तो में बिखरे हैं मंजिलों के निशाँ....
बुत बन गए हैं जो थे कभी कारवां...
दिखाई न देते जिंदगी से हारे...
सुख के किनारे गम के ये धारे...
अपनों के तिनके बिखरने लगे हैं...
एक एक कर सब राह बदलने लगे हैं...
अपनी तन्हाई से इलने लगे हैं ये सारे ...
सुख के किनारे दुःख के ये धारे...
सुख के किनारे, दुःख के ये धारे...
चली जा रही नदिया किसके सहारे ...
...भावार्थ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें