रविवार, 28 फ़रवरी 2010

कोई

" रश्क होने लगा है हमे , अश्कों की सौगातों के लिए
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
क्यूँ न पुछा था मुझ से , उसने , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं वो , बस मिलके बिछुडने लिए !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोई , मेहमान बन , फ़िर दिल में ‘समाने के लिए’ "

लावण्या...

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