"बहके कदम कहीं उठ न जाए,
माँ बाप का सिर शर्म से झुक न जाए,
बहिनें वरदान बने अभिशाप नहीं"
मान्यवर,
आज के इस अपसंस्कृति के घोर अंधकार में दिग्भ्रमित होकर हमारी बहनें एक छ्द्दम, लुभावने किन्तु यातनामय प्यार के जाल में फंसकार घर से भाग कर अपनी जिंदगी को पतन की खाई में धकेल देती है । जिसके परिणाम स्वरुप उनकी जिंदगी नरक होकर रह जाती है। अपनी बहनों को नरक जैसी जिंदगी से बचाने की तलाश में एक सच्चे भाई की पुकार को प्रस्तुत कर रहा हु....
बहन! प्यार मुहब्बत की झूठी बातें।
मन से पूरी तरह त्यागना,
बाप के घर से मरना भी पडे,
तो भी घर से कभी मत भागना।
प्रिय बहन, शुभाशीष
आज तुम्हें एक खास नसीहत देने के लिए मैं यह खत लिख रहा हूँ। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठॊं में दर्ज शायद तुमने पढ़आ हो या नहीं ,शायद तुम्हें जानकारी हो या नहीं, क्योंकि मैं जानता हूँ बहन कि तुम्हें टी.वी. छोडकर पुस्तकें पढ़ने की फुर्सत ही कहाँ है? इतिहास के झरोखे मे झांकने का वक्त ही कहाँ है? लेकिन तुम्हें इस भैया की कसम है तुझे ये खत पुरा पढ़ना होगा।
तुमने पन्नाधाय का नाम सुना होगा, फ़र्ज निभाने में इससे बढ़कर दुनिया में कोई ऐसा उदाहरण आज तक दुसरा नहीं हुआ। एक माँ फर्ज की खातिर अपनी ही नजरों के सामने अपने जिगर के टुकडे का कत्ल होते देखती रह जाती है। दुसरो के लिए इतने बडे त्याग की गाथा आज तक दूसरी नहीं हुई। ये नारी का त्याग है।
हाडी रानी का नाम सुना है? युध्द भुमि में लडते हुए अपने पति को, पत्नी मोह में फ़सने से, उसके द्वारा मंगवाई एक निशनी के रुप में हाडी रानी(पत्नी) अपने सिर को काटकर युध्द भुमि में भेज देती है, ताकि वो वीरतापूर्वक युध्द जीत सके। मेरी बहन, ये भी एक नारी का त्याग है।
अलाउद्दीन खिलजी ने जब आक्रमण किया और मेवाड कीं महारानी पद्दमिनी के रुप पर वह आसक्त हो गया तो उस वीरांगना ने अपने शील की रक्षा हेतु जौहर कर यानी अग्नि में कूद गई। यह भी एक नारी के त्याग की पराकाष्ठा है।
ऐसे एक ही नहीं सैकड़ों उदाहरण है त्याग के जिसका उल्लेख यहाँ मुश्किल है। मेरी बहन तूने कल्पना चावला का नाम सुना होगा। अमेरिका की अन्तरिक्ष यात्रा पर जाने वाली पहली भारतीय नारी। यह दुर्भाग्य था हमारा कि वे नहीं रह पाई पर उनके अपने हौंसले ने विश्व क्षितिज पर भारत माँ का नाम रोशन किया।
तुम क्या समझती हो, अगर वो तुम्हारी तरह टी.वी. व फिल्मों में समय बर्बाद करती तो क्या अंतरिक्ष यात्री बन सकती थी, कभी नहीं। यदि वो स्कुल कोलेज में युवकों के साथ मटर गश्ती करती तो क्या वो भारत माँ का नाम विश्व के मानचित्र पर रोशन कर सकती थी? कभी नहीं ।
फिर तुममें इतनी समझ क्यों नहीं कि तुम भी जीवन में कोई कीर्तिमान स्थापित करो । वैसे आज हर क्षेत्र में नारियाँ युवकों की तुलना में अव्वल है, किन्तु कई बहने टी.वी. फिल्मों की काल्पनिक दुनिया की चकाचौंध में दीवानी होकर समय से पहले ही जीवन दर्पण तोड देती है।
मेरी बहन, जीवन क्या है? तुम्हें इसके महत्व को समझना होगा। इसके लिए तुम्हें स्वयं को त्याग की भट्टी में कुन्दन बनाकर वक्त की कसौटी पर कसना होगा। तभी जीवन की सार्थकता का भान होगा। बहन जीवन यह नहीं कि तुम ब्यूटी पार्लर में जाकर अपने रुप को सँवारती रहो। जीवन यह नहीं कि हीरो हीरोइनों के पगलपन का शिकार होकर उनकी बेवकूफी को जीवन का सत्य समझ बैठो। जीवन यह भी नहीं कि तुम पारिवारिक रिश्तों को भुलकर युवकों के उन्माद में पडकर गहरे कुएँ में डुबकियाँ लगाती रहो।
तुम त्याग की मुर्ती हो। तुम समर्पण का स्वरुप हो। करुअणा भाव रोम रोम में समाया है । बहन! तुम्हें मालुम नहीं होग कि एक जमाना था कि बेटी को जन्मते ही दुधपीती कर देते थे, यानी दूध में डुबा कर मार देते थे। बेटी को जन्मते ही जिन्दा गाड़ दिया जाता था, बेटी अभिशाप मानी जाती थी।
लेकिन आज बेटी के जन्म को वरदान के रुप में लिया जाता है। तुम्हारे जन्म पर लड्डू बाँटे गए थे, पार्टियाँ दी गई थी। घर में जश्न मनाया जाता है। आज हर बाप अपनी बेटी को बेटे से ज्यादा वफादार मानता है।
बहन! तू ध्यान से सुन, जब तुम्हारा जन्म हुआ माँ-बापू की खुशी का पारावार न रहा। उनके आंगन का कण कण झूम उठा तुझे अच्छी से अच्छी स्कुलो में प्रवेश दिलाया । एक से बढ्कर एक महंगे खिलौने को तेरे साथी बनाया। उच्चतम श्रेणी के महंगे परिधानो की आपूर्ति में तेरे पापा कभी नहीं सकुचाए। तेरे हर आदेश को तेरा पापा ने अध्यादेश माना, तू बडी होती गई। यौवन की दहलीज पर पाँव बढाती चली गई। अपनी मीठी वाणी से तू सबको मोहित करती गई। भाई की कलाई को रक्षाबन्धन के दिन नये विश्वास के साथ तू सजाती रही। इधर तेरे पापा तेरे हाथ पीले करने की फ़िक्र में दिन रत मेहनत में लगे रहे, इसलिए कि वे तुझे दुनिया का हर सुख दे सकें। तेरा विवाह धूम धाम से करें। उनकी यही भावना थी कि बेटी की शादी के वक्त उसके सपनों का शाहजादा घोडे पर सवार होकर जब आये तो वे विवाह स्थल पर जन्नत के चाँद तारे उतार लाएँ। इन भावनाओं की कद्र करना सीखो बहन!
रोज मन्दिर जाने वाली बेटी, हिन्दू संस्कारो में पलने वाली बेटी, बाप की बाहों में लिपटने वाली बेटी, माँ के आँचल में छुप छुपकर रोने वाली बेटी, भाई के हाथों में राखी बांधने वाली बेटी, महंगे वस्त्रो के लिए जिद करने वाली बेटी यदि अपने मन ही मन में इन सारे पवित्र रिश्तों को कब्र में दफनाने की साजिश रचने वाली चुडैल का स्वरुप लेने लग जाये, तब बाप फिर सोचने लगेगा कि मैनें जन्मते ही इस कुलच्छिनी का गला क्यों नहीं घोंट दिया?मेरी बहन! इतने सारे पवित्र रिश्तों को तोड़कर तुम भाग क्यों जाती हो? तुम्हें बाप के घर में क्या दुःख था जो तुम उन्हें दु:खों की कूर आंधियों में गोते लगाने हेतु छोड कर घर से भाग गई। इतनी कायर कैसे हो गई तुम कि स्वर्थवश एक साथ माँ बाप व भाई के अरमानो को क्यों दफन कर जाती हो ? तुम अपनी क्षणिक खुशी के लिए ता-जिन्दगी खुशी देने वाले इन रिश्तों का गला क्यों घोंट देती हो ? जिनके संग तुमने सारा बचपन गुजारा, जिनकी लोरियाँ सुनकर तुम सोयी, जिनकी थपकियों से तुमने गहरी नींद पायी, जिस बाप ने अपने हाथों के झूले में तुम्हें झुलाया, जिस भाई ने तुम्हारी रक्षा में प्राण देने की कसमे खाई, तुम इन परिजनों का त्याग कैसे भूल जाती हो ? इतनी स्वार्थी कैसे बन जाती हो ?
तुम युवकों की वासना का शिकार हो जाती हो। तुम मुहब्बत के झुठे जाल में फंसती चली जाती हो और धीरे धीरे प्यार के जाम पी पीकर तुम अपने पुरे परिवार के लिए कलंक की कालिमा बन जाती हो। तुम बडी धोखे बाज बन जाती हो। कभी तुम माँ बाप द्वारा सगाई करने के बाद भी घर से भागकर अपने चेहरे पर कालिख पोत जाती हो। कई बार तुम माँ बाप द्वारा शादी की पत्रिका बांटने के बाद भी अपने प्रेमी के साथ भागकर अपने परिवार को जिन्दा कब्र में गाड देती हो। भागते वक्त तुम्हें क्यों याद नहीं आता माँ का करुणा भरा चेहरा, बाप के चेहरे पर झलकता वात्सल्य का भाव, भाई की आँखों में तैरता तेरी प्रीत का महासागर?
हिन्दू धर्म में जन्म लेने वाली बेटी यह कैसे भुल जाती है कि जिसके साथ वह भाग कर जा रही है वह मांसाहारी है या नहीं, उम्र में 10-12 साल बडा है या उसके परिजनों का चरित्र क्या याद रखना बहन ? जो भी मुहब्बत के जाल में फंसकर भागकर तथा बाबुल की दहलीज को ठॊकर मारकर गई है, वह आज दाने-दाने को मोहताज है। अब खून के आँसू रो रोकर माथा फोड रही है।मेरी बहन! तुम अब जवान हो गई हो। अपने जीवन साथी के चयन में विवेक जगाओ। यह जीवन एक लम्बी यात्रा है, जो साथी तुम्हें धोखे से उडा ले जाए, वो तुम्हें जीवन में खुशियाँ नहीं दे सकता। दोस्त होना अलग बात है। जीवन साथी बनाना अलग बात है। तुमने इतने संस्कार भी नहीं जगाये कि क्या मजाल है कोई तुम्हारे तेज से भस्मीभूत हो जाये, पर दुःख तो इस बात का है कि तुम खुद भौतिकता की चादर ओढकर फिल्मों का जहर पीकर पागलपन में झूठे प्यार की आग में जलती चली जाती हो। बहन! तुम अपनी खुशियों की कब्र स्वयं अपने हाथों से खोद रहीं हो।
"जवानी चार दिन की बात है दुनिया ए फानी में,
मगर ये बात किसको याद रहती है भरी जवानी में"
तुम्हें यह शाश्वत सत्य आज स्वीकार करना ही होगा कि दुनिया में आज तक ऐसी कोई माँ नहीं हुई जिसने अपनी औलाद का अहित सोचा हो, अतः माँ को सखी, मार्ग दर्शक, देवी व भगवान मानकर उसकी इच्छा के विरुध्द कभी कोई कदम न उठाना।
माँ बाप कभी तुम्हारे, दुश्मन हो नहीं सकते,
युम्हारे जीवन में वे कभी, काटे बो नहीं सकते।
कैसे भूल सकती हो तुम, उनके सारे अहसान,
जीते जी कैसे पहुँचाओगी, तुम उनको शमशान्।
"मर्यादा का बंधन है नारी,
पूजा वाला चंदन है नारी,
जिसमें संस्कारों की तुलसी,
एसा एक आगंन है नारी॥"