शनिवार, 19 दिसंबर 2009

इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया


ओ मैं निकला थैली ले के

ओ रस्ते पर,ओ सडक में

इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया

रब जाणे, कब गुजरा,तब सरकस

कब बाजार आया ,

इक चोर आया, मै ओत्थे थैली छोड़ आया

उस मोड़ पर मुझको चोर मिला

मैं घबरा कर सब कुछ भूल गया

उसके चाकू की धार देख

मैं डर कर चक्कर खा गया

होश आया मैं भागा

सब आलू, सब बैंगन, मै छोड़ आया

मैं ओत्थे थैली छोड़ आया

बस एक किलो करेला ख़रीदा

लौकी भी मुझको हरी लगी

क्या खूब थी मिर्ची रब जाणे

मुझको बड़ी ही खरी लगी

मैंने देखा करोंदा चिकना

संग उसके हरा मखना , मैं छोड़ आया

मैं ओत्थे थैली छोड़ आया

घबराकर मैं यूँ सूख गया

जैसे पालक सूख गई

छत्ते की ओट में छिपे-छिपे

जैसे जान ही मेरी निकल गयी

वो समझा, आज उसने, थैली में

माल जोर पाया-मैं ओत्थे थैली छोड़ आया

इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया

शिल्पकार

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