जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गया है, उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है। जो थोडा इधर थोडा उधर हाथ मारते है, वे कोई उद्देश्य पुर्ण नही कर पाते। हा, वे कुछ क्षणो के लिए तो बडा जोश दिखाते है, किन्तु वह शीघ्र ही हो जाता है ठण्डा।
गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
नये साल का अभिनन्दन है
WISH YOU ALL HAPPY NEW YEAR-2010
नया साल आ रहा है... २००९ अलविदा कहने को तैयार हो चूका है... बहुत कुछ है जो हमने इस साल पाया और बहुत कुछ खोया भी होगा... कई खुशियों के दिन साथ होंगे तो कई दिनों ने रुलाया भी होगा... हर साल की तरह इस साल ने भी बहुत कुछ सिखाया होगा.... बस आने वाले साल २०१० के लिए मिलकर दुआ करते है कि सबके लिए खुशियों से भरा हो... गम की थोड़ी परछाई भी साथ हो क्योंकि गम के बिना खुशियों का कोई मोल नहीं... आप सबके लिए दुआ करता हूँ आने वाला साल आप सबके लिए मंगलमय हो, आपको नयी मंजिलें दिलाये और और नए मुकाम दिलाये... आप सबको मेरी तरफ से नए साल की हार्दिक सुभकामनायें... A very very Happy New Year....
नये साल का अभिनन्दन है
नये साल का स्वागत करके, नूतन आस जगाने दो।
कल क्या होगा, कौन जानता, मन की प्यास बुझाने दो।।
क्या खोया, क्या पाया कल तक, अनुभव के संग ज्ञान यही।
इसी ज्ञान से कल हो रौशन, यह विश्वास बढ़ाने दो।।
जो न सोचा, हो जाता है, नहीं हारते वीर कभी।
सच्ची कोशिश, प्रतिफल अच्छा, बातें खास बताने दो।।
कल आएगा, बीता कल भी, नहीं किसी पर वश अपना।
अपने वश में वर्तमान बस, यह आभास कराने दो।।
जितने काँटे मिले सुमन को, बढ़ती है उतनी खुशबू।
खुद का परिचय संघर्षों से, यह एहसास कराने दो।।
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
आँख जब बंद किया करते हैं
आँख जब बंद किया करते हैं
सामने आप हुआ करते हैं।
आप जैसा ही मुझे लगता है
ख्वाब में जिस से मिला करते हैं।
तू अगर छोड़ के जाता है तो क्या
हादसे रोज़ हुआ करते हैं।
नाम उनका, न कोई उनका पता
लोग जो दिल में रहा करते हैं।
हमने राही का चलन सीखा है
हम अकेले ही चला करते हैं।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
सामने आप हुआ करते हैं।
आप जैसा ही मुझे लगता है
ख्वाब में जिस से मिला करते हैं।
तू अगर छोड़ के जाता है तो क्या
हादसे रोज़ हुआ करते हैं।
नाम उनका, न कोई उनका पता
लोग जो दिल में रहा करते हैं।
हमने राही का चलन सीखा है
हम अकेले ही चला करते हैं।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
अंधेरी कोठरी
महानगर में
प्रमुदित थे दोनों बहुत
माँ को बुलाया दूसरे बेटे के पास से
गृह प्रवेश किया
हवन पाठ करवाया।
दिखाते हुए माँ को अपना घर
बहू ने कहा--
माँजी ! आपके
आशीर्वाद से संभव हुआ है यह सब
इनको पढ़ा लिखा कर इस लायक बनाया आपने
वरना हमारी कहाँ हैसियत होती इतना मंहगा घर लेने की
माँ ने गहन निर्लिप्तता से किया फ्लैट का अवलोकन
आँखों में चमक नहीं उदासी झलकी
याद आये पति संभवत:
याद आया कस्बे का
अपना दो कमरे, रसोई, एक अंधेरी कोठरी व स्टोर वाला मकान
जहाँ पाले पोसे बड़े किए चार बच्चे, रिश्तेदार, मेहमान
बहू ने पूछा उत्साह से-- कैसा लगा माँजी! मकान
'अच्छा है, बहुत अच्छा है बहू !
इतनी बड़ी खुली रसोई, बैठक, कमरे ,गुसलखाने कमरों के बराबर
सब कुछ तो अच्छा है
पर इसमें तो है ही नहीं कोई अंधेरी कोठरी
जब झिड़केगा तुम्हें मर्द, कल को, बेटा!
दुखी होगा जब मन
जी करेगा अकेले में रोने का
तब कहाँ जाओगी, कहाँ पोंछोगी आँसू और कहाँ से
बाहर निकलोगी गम भुला कर
जुट जाओगी कैसे फिर हँसते हुए
रोजमर्रा के काम में ।'
दिनेश चन्द्र जोशी
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
अरेंज्ड मैरेज vs लव मैरेज
तीनों बच्चों की छुट्टियां, बाहर बर्फ ही बर्फ...त्यौहार और जन्मदिन का माहौल ..और रोज-रोज नए व्यंजनों की फरमाइश....अब आप सोचिये की हमारी क्या दशा है....बसंती होती तो कहती 'खा खा कर घोड़ी हो गयी हो'...खैर ऐसे माहौल में जो सबसे अच्छी बात होती है..बच्चों से घुलने-मिलने का मौका....बात-बात में उनसे कुछ-कुछ उगलवा लेने में भी भलाई होती है....सब कुछ ठीक तो चल रहा है न....कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है.....मेरे बच्चे वैसे भी मुझसे बहुत घुले-मिले हुए हैं.....अपनी सारी बातें मुझसे बताते हैं......हम चारों किसी भी विषय पर बात कर लेते हैं.....मौका निकाल कर मैंने यही काम करना शुरू किया है......यूँ ही हलके से अक्सर पूछ लेती हूँ कहीं कोई लड़की/लड़का पसंद तो नहीं आई/ आया है....वैसे छोटे तो हैं...लेकिन इतने भी छोटे नहीं....और फिर प्रेम की कोई उम्र ही कहाँ होती है....कभी भी कहीं भी हो जाता है ...
बड़े बेटे मयंक को हम सब 'भोला बाबा ' कहते हैं.....लड़कियों से ऐसे भागता है जैसे वो कोई संक्रामक बिमारी हों....लेकिन उसकी वजह जो उसने बताई सुनने लायक है...इसके लिए एक घटना जो इन्ही-दिनों घटी है बताती हूँ...
यहाँ क्रिसमस की शौपिंग की सेल लगी है हर जगह...मैं, संतोष जी और प्रज्ञा भी कहाँ संवरण कर पाए शौपिंग का लोभ ...perfumes और कॉस्मेटिक्स की ज़बरदस्त सेल लगी थी लोरियाल की..हम भी जा ही पहुंचे वहां.....अन्दर पहुँच कर देखा तो मयंक और उसका काला दोस्त गेब्रियल और गोरा दोस्त मथ्यु भी वहीँ हैं....मुझे थोड़ी हैरानी हुई मयंक को वहां देख कर ....मयंक ने जैसे ही हमलोगों को देखा.....फटाफट वो आ गया हमारे पास .....मैंने पुछा अरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो...बोला मेरे दोस्त अपनी गर्ल फ्रेंड्स के लिए गिफ्ट खरीद रहे हैं........ मम्मी मेरे दोस्त कह रहे हैं आप ज़रा उनकी हेल्प करा दो .......ये लोग समझ नहीं पा रहे है उनकी गर्ल फ्रेंड्स के लिए क्या खरीदना चाहिए ....खैर मैंने उन दोनों लड़कों की मदद की और जो समझ में आया बता दिया....इसी चक्कर में मैंने मयंक से पूछा... तुम कुछ नहीं ले रहे हो कुछ किसी के लिए.....तो उसने जो कहा मुझे हैरान कर गयी बात...
कहने लगा मम्मी गर्ल फ्रेंड रखना बहुत मंहगा पड़ता है..और मैं ठहरा गरीब इंसान...मेरे पास इतने पैसे नहीं होते कि मैं ये सब अफोर्ड कर सकूँ.......अब मेरे दोस्तों ने अपने फीस के पैसे से ये खरीदा है और मुझे मालूम है उन दोनों लड़कियों को ये गिफ्ट पसंद नहीं आएगा....हर बार यही करतीं हैं वो.....इसलिए ये सब मेरे बस की बात नहीं.....आपलोग मेरी फीस देते हो वही बहुत बड़ी बात है मम्मी....मैं आपसे इन बातों के लिए पैसे नहीं ले सकता.....और फिलहाल मुझे अपनी पढाई पर ध्यान देना है.......हालांकि जिस तरीके से मेरे बेटे ने खुद को गरीब कहा.....दिल भर आया मेरा .....लेकिन इस बात का भी गर्व हुआ की उसने अपने अन्दर कोई बे-वजह की भ्रान्ति नहीं पाल रखी है....मुझे वास्तव में उसकी सोच से बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई ....मैंने भी कहा.... हाँ बाबा पढ़-लिख लो नौकरी पकड़ लो फिर सब आसन है...तो खैर मयंक का यही प्लान है....
अब सुनते हैं मृगांक के विचार......मृगांक ने बताया कि ..उसके क्लास में 'डेटिंग' पर विचार -विमर्श हो रहा था ........जब उससे पूछा गया डेटिंग के बारे में.....उसने क्लास में कह दिया कि मैं तो कर ही नहीं सकता 'डेटिंग' क्यूंकि मेरी शादी तो 'arranged' होगी....सारा क्लास सन्न रह गया था सुन कर...are you kidding ??? इस ज़माने में तुम अमेरिका में बैठ कर अरेंज्ड मैरेज की बात भी कैसे कर सकते हो...?? इस बात पर मृगांक ने जो दलील दी आपके सामने रखती हूँ....याद रखियेगा ये सिर्फ १९ साल का है और अपनी बुद्धि से कह रहा है कुछ...गलतियाँ भी हो सकती हैं.. आप सबसे निवेदन है गलतियों को नज़र अंदाज़ कीजियेगा...ये सारी दलील उसने क्लास के सामने रखी थी....
अरेंज्ड मैरेज और लव मैरेज में फर्क निम्लिखित हैं.....(यहाँ लड़के की तरफ से लिखा जा रहा है, लेकिन ये सारी बातें लड़की पर भी लागू होंगीं)
१ अरेंज्ड मैरेज में माँ-बाप लड़का या लड़की ढूंढते हैं....माँ-बाप अपने बच्चे के लिए बेस्ट ही चाहते हैं......इस खोज में उनके अपने अनुभव बहुत काम आते हैं.....वो हर पसंद को मद्दे नज़र रखते हुए सही साथी की तलाश करते हैं...साथ ही वो हर गलती को भी सामने रखते हैं जो उन्होंने ख़ुदकिये थे.....फलस्वरूप, कुछ गलतियों से अपने बच्चों को साफ़ बचा ले जाते हैं... .....साथ ही कई गलतियों से बचने की तरकीब भी उनसे पता चल जाता है .....जो लव मैरेज करते हैं उन्हें जीवन का और उसकी जटिलता का कोई अनुभव तो होता नहीं है ....इसलिए गलतियाँ होतीं ही होतीं हैं जीवन साथी के चुनाव में......और यह तो जग-जाहिर है ही की प्यार अँधा भी होता है......और इस कहावत का बहुत बड़ा योगदान भी होता है इस निर्णय में ....
२. अरेंज्ड मैरेज में शादी का सारा खर्चा माँ-बाप का होता है...खर्चे के बारे में सोचना नहीं पड़ता है.......लेकिन लव मैरेज में लड़का अपराध भाव से इतना घिरा होता है कि माँ-बाप की तरफ से किया गया हर काम उसे अहसान लगता है.... वो माँ-बाप से कम से कम खर्चा करवाने की जुगत में रहता है, शादी की रस्मों को एन्जॉय नहीं कर पाता मन से ....क्यूंकि वो हर वक्त compromise करता है.....इसी चिंता में रहता है.... कहीं किसी को बुरा न लगे........शुरू में ही लड़का बँट जाता है ....अपने माँ-बाप और लड़की तथा लड़की के माँ-बाप के बीच .....
३ . अरेंज्ड मैरेज करने वालों को घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं पड़ता है.....आराम से घर में रहो......और अगर जो कहीं जाना भी पड़ा तो .....घर बसाने में माँ-बाप पूरी मदद करते हैं....दिल से..जबकि लव मैरेज में..माँ-बाप का घर सबसे पहिले छोड़ना पड़ता है.....ज्यादातर लडकियां रहतीं ही नहीं हैं लड़के के माँ-बाप के साथ.....क्यूंकि लड़की already लड़के पर हावी होती है.....इसलिए घर छोड़ना ही पड़ता है और दूसरा घर बसाना ही पड़ता है ...इस काम में लड़के के माँ-बाप दूर रह कर ही बात करते हैं .....कोई भी सलाह देने में भी कतराते हैं .....कहेंगे...जैसा तुम्हें ठीक लगे करो....तुम्हारी अपनी पसंद है......हम क्या कह सकते हैं...
४ . अरेंज्ड मैरेज में लड़की का स्वाभाव अगर लड़के की माँ से नहीं मिल पता, अर्थात सास-बहु में नहीं बनती है तो लड़का आराम से अपने माँ-बाप पर इलज़ाम लगा सकता है ...आपने पसंद किया है आप ही समझो...मुझे बीच में मत घसीटो ...मुझसे मत कहो कुछ.....लेकिन अगर लव मैरेज में ऐसा हुआ तो ...लड़के की खैर नहीं.....उसे सुबह शाम बस इसी युद्ध से गुजरना होगा....लड़का ना हुआ फ़ुटबाल हुआ...कभी इधर कभी उधर....जीना मुश्किल हो जाता है...
५ . अरेंज्ड मैरेज के जब बच्चे होंगे तो माँ-बाप के घर पर ही होंगे....हॉस्पिटल कि जिम्मेवारी माँ-बाप पर .....अगर जो कहीं बाहर रह रहा है लड़का तो अपने माँ-बाप के घर लड़की को छोड़ कर आ सकता है या फिर माँ-बाप ही आ जायेंगे माँ-बाप आयेंगे ही आयेंगे...कोई बहाना नहीं कर सकते हैं...क्यूंकि बहु रुपी मुसीबत वो खुद लेकर आये हैं ....लेकिन लव मैरेज में मियाँ-बीवी को अकेले सब भुगतना पड़ता है......माँ-बाप से कोई भी उम्मीद नहीं की जा सकती है.....अगर उनसे कहा भी मदद करने को या आने को तो .... आयेंगे और अहसान जताएंगे या फिर आयेंगे ही नहीं वो कहेंगे ॥खुद ही भुगतो....जब अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो तो बच्चे के समय हमारी क्या ज़रुरत ??? जब लड़की पसंद की तब तो हमसे पूछा नहीं अब क्यूँ ???
६. अरेंज्ड मैरेज में अगर कभी पत्नी से झगडा हो जाए तो माँ-बाप को जम कर सुनाया जा सकता है ....आप लोगों ने ...मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी...और माँ-बाप इतने ज्यादा अपराध बोध से ग्रस्त हो जायेंगे और सहानुभूति करेंगे की सारी जायदाद लड़के के नाम कर देंगे...हा हा हा
७. अरेंज्ड मैरेज में समय बहुत आसानी से बीत जाता है.....शुरू के कुछ साल तो एक-दूसरे को समझने में बीत जायेगे ....प्रेम धीरे-धीरे पनपता है ....और परिपक्व होता है...बच्चों के होने के बाद या फिर बिना बच्चो के भी ...बाद में एक-दूसरे की आदत हो जाती है....
जबकि लव मैरेज में शादी ही तब होती है जब प्यार ख़तम होने लगता है....शुरू के साल बस एक-दूसरे कि कमियाँ निकालने में बीत जाते हैं ....और बाद में यह याद दिलाया जाता है कि तुमने ये वादा किया था वो पूरा नहीं किया.....तुम मेरे पीछे पड़े थे...मैं तो शादी ही नहीं करना चाहती/चाहता था इत्यादि .... शादी सिर्फ लड़ने के लिए ही रह जाती है......
तो ये थी मृगांक की दलील उसके क्लास में और विश्वास कीजिये....सारा क्लास convinced हो गया की अरेंज्ड मैरेज बेहतर है लव मैरेज से ....अब उसके दोस्त हिन्दुस्तानी लड़की ढूंढ़ रहे हैं....और सबने कहा है मृगांक से अपनी मम्मी से कहो हमारे लिए भी रिश्ता ढूंढे ......
कहते हैं जोड़े ऊपर से ही बन कर आते हैं....मयंक-मृगांक के जीवन में क्या है ये तो ईश्वर ही जाने लेकिन बिलकुल नई पीढी से ऐसी बातें सुनकर मन बहुत खुश हुआ....बेशक दलील बहुत पुख्ता न हो....लेकिन दलील में दम ज़रूर है....आप क्या कहते हैं ???
swapnamanjusha
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
अजीब नाता
देखा कैसा अजीब सा नाता है
दूर होकर भी पास होते हैं
एक दूसरे को न देखकर भी देखते हैं
बिना बात किए भी बतियाते हैं
कसक सी दिल में लिए
होठों को सिए रखते हैं
मुलाक़ात की चाह में
रोज दीदार को आते हैं
पर तेरे दर-ओ-दीवार
रोज ही बंद नज़र आते हैं
चाह उतनी ही उत्कट उधर भी है
ये मालूम है मगर
तेरे अहम् के नश्तर ही
तुझे भी रुलाते हैं
ये घुटती हुई खामोशी
इसकी सर्द आवाज़
दिल के तारों पर
दर्द बन ढल जाती है
बिना आवाज़ दिए भी
दोनों के दिल गुनगुनाते हैं
देखा कैसा अजीब सा नाता है
वन्दना
ऊँचाई
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
रचनाकार: अटल बिहारी वाजपेयी
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
रचनाकार: अटल बिहारी वाजपेयी
चम चम चमके चुन्दडी / राजस्थानी लोकगीत
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
म्हारी तो रंग दे चुन्दडी बिण्जारा रे
म्हारे साहेबा रो , म्हारे पिवजी रो , म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
जोधाणा सरीखा पैर मैं बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
पायल घड़ दे बाजणी बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
म्हारी तो रंग दे चुन्दडी बिण्जारा रे
म्हारे साहेबा रो , म्हारे पिवजी रो , म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
जोधाणा सरीखा पैर मैं बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
पायल घड़ दे बाजणी बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
रविवार, 20 दिसंबर 2009
तुम शहज़ादी रूप नगर की...
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
गोपालदास "नीरज"
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
ओ मैं निकला थैली ले के
ओ रस्ते पर,ओ सडक में
इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
रब जाणे, कब गुजरा,तब सरकस
कब बाजार आया ,
इक चोर आया, मै ओत्थे थैली छोड़ आया
उस मोड़ पर मुझको चोर मिला
मैं घबरा कर सब कुछ भूल गया
उसके चाकू की धार देख
मैं डर कर चक्कर खा गया
होश आया मैं भागा
सब आलू, सब बैंगन, मै छोड़ आया
मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
बस एक किलो करेला ख़रीदा
लौकी भी मुझको हरी लगी
क्या खूब थी मिर्ची रब जाणे
मुझको बड़ी ही खरी लगी
मैंने देखा करोंदा चिकना
संग उसके हरा मखना , मैं छोड़ आया
मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
घबराकर मैं यूँ सूख गया
जैसे पालक सूख गई
छत्ते की ओट में छिपे-छिपे
जैसे जान ही मेरी निकल गयी
वो समझा, आज उसने, थैली में
माल जोर पाया-मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
इक चोर आया,मैं ओत्थे थैली छोड़ आया
शिल्पकार
उतनी दूर मत ब्याहना बाबा!
बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने खातिर
घर की बकरियां बेचनी पड़े तुम्हे
मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज्यादा
ईश्वर बसते हों
जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ
वहां मत कर आना मेरा लगन
वहां तो कतई नही
जहाँ की सड़कों पर
मान से भी ज्यादा तेज दौड़ती हों मोटर गाडियां
ऊंचे ऊंचे मकान
और दुकान हों बड़े बड़े
उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता
जिस घर में बड़ा सा खुला आंगन न हो
मुर्गे की बांग पर जहाँ होती ना हो सुबह
और शाम पिछवाडे से जहाँ
पहाडी पर डूबता सूरज ना दिखे.
मत चुनना ऐसा वर
जो पोचाई और हंडिया में
डूबा रहता हो अक्सर
काहिल निक्कम्मा हो
माहिर हो मेले से लड़कियां उड़ा ले जाने में
ऐसा वर मत चुनना मेरी खातिर
कोई थारी लोटा तो नहीं
कि बाद में जब चाहूंगी बदल लुंगी
अच्छा-ख़राब होने पर
जो बात-बात में
बात करे लाठी डंडा की
निकाले तीर-धनुष कुल्हाडी
जब चाहे चला जाये बंगाल,आसाम, कश्मीर
ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे
और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ
जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाये
फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने
जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ
किसी का बोझ नही उठाया
और तो और
जो हाथ लिखना नहीं जानता हो "ह" से हाथ
उसके हाथ में मत देना कभी मेरा हाथ
ब्याहना तो वहां ब्याहना
जहाँ सुबह जाकर
शाम को लौट सको पैदल
मैं कभी दुःख में रोऊँ इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप.....
महुआ का लट और
खजूर का गुड बनाकर भेज सकूँ सन्देश
तुम्हारी खातिर
उधर से आते-जाते किसी के हाथ
भेज सकूँ कद्दू,-कोहडा, खेखसा, बरबट्टी,
समय-समय पर गोगो के लिए भी
मेला हाट जाते-जाते
मिल सके कोई अपना जो
बता सके घर-गांव का हाल-चल
चितकबरी गैया के ब्याने की खबर
दे सके जो कोई उधर से गुजरते
ऐसी जगह में ब्याहना मुझे
उस देश ब्याहना
जहाँ ईश्वर कम आदमी ज्यादा रहते हों
बकरी और शेर
एक घाट पर पानी पीते हों जहाँ
वहीं ब्याहना मुझे!
उसी के संग ब्याहना जो
कबूतर के जोड और पंडुक पक्षी की तरह
रहे हरदम साथ
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर
रात सुख-दुःख बाँटने तक
चुनना वर ऐसा
जो बजता हों बांसुरी सुरीली
और ढोल मांदर बजाने में हो पारंगत
बसंत के दिनों में ला सके जो रोज
मेरे जुड़े की खातिर पलाश के फुल
जिससे खाया नहीं जाये
मेरे भूखे रहने पर
उसी से ब्याहना मुझे.
-निर्मला पुतुल
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
किराये का मकान
आशियाना बनाने की सोचते-सोचते
उम्र बीत गई किराये के मकान में
आजकल आजकल आजकल आजकल
गुजर बसर हो गई इसी खींचतान में
पिता फिर मां विदा हुईं यहीं से श्मशान में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
बच्चों को मार, डांट, प्यार और पुचकार
रिश्तेदारों की फौज, आवभगत मानसम्मान
न्योते, बधाई, दावत और खूब मचा धमाल
अब भी तनहा रह गए इस मुकाम में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
भाई का लड़ना और बहन का थप्पड़ जड़ना
मां के आंचल में जा रोना और उसका गुस्सा होना
कितनी यादें समेटे ये आंगन इस मकान में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
बच्चे बढ़े, पढ़े और नौकरी पे दूर प्रदेश चले
मैं अकेला ही रह गया किराये के मकान में
और वो भी कहीं आशियाना बना नहीं पा रहे
अपनी जमीन से दूर हैं किसी किराये के मकान में
किराये का मकान अब सताने लगा
अपनी छत का मतलब समझ आने लगा
अपने अपनी ही छत के नीचे मिलते हैं
आदमी अकेला रह जाता है किराये के मकान में।।
-ज्ञानेन्द्र
उम्र बीत गई किराये के मकान में
आजकल आजकल आजकल आजकल
गुजर बसर हो गई इसी खींचतान में
पिता फिर मां विदा हुईं यहीं से श्मशान में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
बच्चों को मार, डांट, प्यार और पुचकार
रिश्तेदारों की फौज, आवभगत मानसम्मान
न्योते, बधाई, दावत और खूब मचा धमाल
अब भी तनहा रह गए इस मुकाम में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
भाई का लड़ना और बहन का थप्पड़ जड़ना
मां के आंचल में जा रोना और उसका गुस्सा होना
कितनी यादें समेटे ये आंगन इस मकान में
फिर भी अपना कुछ नहीं किराये के मकान में
बच्चे बढ़े, पढ़े और नौकरी पे दूर प्रदेश चले
मैं अकेला ही रह गया किराये के मकान में
और वो भी कहीं आशियाना बना नहीं पा रहे
अपनी जमीन से दूर हैं किसी किराये के मकान में
किराये का मकान अब सताने लगा
अपनी छत का मतलब समझ आने लगा
अपने अपनी ही छत के नीचे मिलते हैं
आदमी अकेला रह जाता है किराये के मकान में।।
-ज्ञानेन्द्र
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
हम चुप हैं ।
बर्तन होटल पर धोता है ,फटे कपड़ो में सोता है
वो किसी और का बेटा है ,इसलिए हम चुप है।
सड़को पर भीख मांगती है ,और मैला सर पे है।
वह बहन किसी और की है ,इसीलिए हम चुप है।
बेटी की इज्जत लुट जाने पर भी वो बेबस कुछ न कर पाती है ।
वो माँ है किसी और कि इसीलिए हम चुप हैं ।
दिन भर मजदूरी करता है, फिर भी भूखा सोता है ।
किसी और का भाई है वो ,इसीलिए हम चुप है ।
बेटी का दहेज जुटाने को ,कितने समझोते करता है
वह किसी और का बाप है ,इसलिए हम चुप हैं ।
चुप रहना हमने सीख लिया है ,बंद करके अपने होंठो को ।
और जीना हमने सीख लिया है ,बंद कर के अपने होंट को ।
लकिन याद रखो दोस्तों ,एक ऐसा दिन भी आयेगा ।
अत्य्चार हम पे होगा ,और तब हमसे बोला न जाएगा ।
क्योंकि हम चुप हैं ।
गौतम यादव
वो किसी और का बेटा है ,इसलिए हम चुप है।
सड़को पर भीख मांगती है ,और मैला सर पे है।
वह बहन किसी और की है ,इसीलिए हम चुप है।
बेटी की इज्जत लुट जाने पर भी वो बेबस कुछ न कर पाती है ।
वो माँ है किसी और कि इसीलिए हम चुप हैं ।
दिन भर मजदूरी करता है, फिर भी भूखा सोता है ।
किसी और का भाई है वो ,इसीलिए हम चुप है ।
बेटी का दहेज जुटाने को ,कितने समझोते करता है
वह किसी और का बाप है ,इसलिए हम चुप हैं ।
चुप रहना हमने सीख लिया है ,बंद करके अपने होंठो को ।
और जीना हमने सीख लिया है ,बंद कर के अपने होंट को ।
लकिन याद रखो दोस्तों ,एक ऐसा दिन भी आयेगा ।
अत्य्चार हम पे होगा ,और तब हमसे बोला न जाएगा ।
क्योंकि हम चुप हैं ।
गौतम यादव
है कोई तुझसे बड़ा
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू आकाश है पहचान खुद को।
तेरा कोई अंत नही, तू अनंत है, है कोई जो तुझे सीमाओं में बांध सके।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू धरा है, पहचान खुद को।
तेरी सहनशीलता, तेरी सुन्दरता का कोई जोड़ नही।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
तू अग्नि है, अपनी पहचान कर।
तेरा तेज, तेरा ताप, तेरी ऊर्जा जीवन का स्रोत है।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू जल है, खुद को पहचान।
तेरी शीतलता, तेरी निर्मलता, तेरी पवित्रता किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू वायु है, अपनी पहचान कर।
तेरा वेग, तेरी शक्ति, तेरा जीवन देने का अंदाज किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
अबरार अहमद
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू आकाश है पहचान खुद को।
तेरा कोई अंत नही, तू अनंत है, है कोई जो तुझे सीमाओं में बांध सके।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू धरा है, पहचान खुद को।
तेरी सहनशीलता, तेरी सुन्दरता का कोई जोड़ नही।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
तू अग्नि है, अपनी पहचान कर।
तेरा तेज, तेरा ताप, तेरी ऊर्जा जीवन का स्रोत है।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू जल है, खुद को पहचान।
तेरी शीतलता, तेरी निर्मलता, तेरी पवित्रता किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू वायु है, अपनी पहचान कर।
तेरा वेग, तेरी शक्ति, तेरा जीवन देने का अंदाज किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
अबरार अहमद
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