बुधवार, 24 नवंबर 2010



Gold Kt: 18k
Gold Wt: 0.600
Stone: Daimond
Ct : 0.095
Pcs : 7
Colour : H/I
Clarity : Vs1/Vs2
Diamond pieces :
Mkg : -
MRP: 3400
Our Price: 2550

Gold Kt: 18k
Gold Wt: 0.750
Stone: Daimond
Ct : 0.095
Pcs : 7
Colour : H/I
Clarity : Vs1/Vs2
Diamond pieces :
Mkg : -
MRP: 3600
Our Price: 2780

मंगलवार, 23 नवंबर 2010


Gold Kt: 18k
Gold Wt: 0.600
Stone: Daimond
Ct : 0.09
Pcs : 7
Colour : H/I
Clarity : Vs1/Vs2
Diamond pieces :
Mkg : -
MRP: 3775
Our Price: 2500

Gold Kt: 18k
Gold Wt: 0.780
Stone: Daimond
Ct : 0.111
Pcs : 9
Colour : H/I
Clarity : Vs1/Vs2
Diamond pieces :
Mkg : -
MRP: 4780/6500
Our Price: 3500

सोमवार, 1 मार्च 2010

असभ्य सभ्य पर हँसता है!!!



आज एक अर्ध्दनग्न लड़की को,
एक सभ्य औरत पर हँसते देखा,
वजह बस इतनी थी कि,
औरत घुंघट ले गाड़ी मेँ,
अपनी इज्जत को खुद मेँ,
समेटे चुपचाप बैठी थी,
और वह आधुनिक लड़की,
कामुक वेश मेँ चौराहे पर खडी,
परोस रही थी अपनी जिस्म,
दुनियां को सरेआम,
और हँस रही थी उस औरत पर,
कैसा बदल गया जमाना अब,
असभ्य सभ्य पर हँसता है,
वाह वाही का हक पाता है,
और वह नारी,
जो भारतीयता की पहचान है,
जिसकी महिमा का गुनगान,
गुँजता है आदिग्रन्थोँ मेँ,
विषय बन जाती है हँसी की,
इन लडकियोँ के बीच,
कहाँ गई भारत की वह गरिमा,
जहाँ नारी देवी मानी जाती थी,
क्या यही है उसका प्रतिबिम्ब,
शायद सब कुछ बदल गया अब,
चोर उचक्के बन गये साधु,
लुटेरे बन गये देश के कर्णधार,
तो क्योँ न यह लडकी,
हँसे उस शालीन औरत पर-





-प्रकाश यादव "निर्भीक"

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

कुछ यूँ भी .......

वक्त कि जुराबों में ,अनफिट रहे हम
पत्थरों के शहर में ,शीशा हुए हम|

खुदा कि खुदाई ,सहते रहे हम
पत्थरों को भगवान मान ,पूजते रहे हम|

उन सूनी और अँधेरी गलियों, कि क्या कहें
जब भीड़ भरी सडको पर , तनहा रहे हम|

अहसासों के आँगन में ,आवाज कि खामोशिया
चंदा कि चांदनी, में ढूंढते रहे हम|

सरपट दौडती जिदगी के , चोराहे पर
वक्त ही कहाँ नजरे मिलाने चुराने को दे पाए हम


अभिव्यक्ति

कोई

" रश्क होने लगा है हमे , अश्कों की सौगातों के लिए
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
क्यूँ न पुछा था मुझ से , उसने , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं वो , बस मिलके बिछुडने लिए !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोई , मेहमान बन , फ़िर दिल में ‘समाने के लिए’ "

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